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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 3 साना-साना हाथ जोड़ि

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 3 साना-साना हाथ जोड़ि is part of NCERT Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 3 साना-साना हाथ जोड़ि.

BoardCBSE
TextbookNCERT
ClassClass 10
SubjectHindi Kritika
ChapterChapter 3
Chapter Nameसाना-साना हाथ जोड़ि
Number of Questions Solved24
CategoryNCERT Solutions

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 3 साना-साना हाथ जोड़ि

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था?
उत्तर-
झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका के मन में सम्मोहन जगा रहा था। इस सुंदरता ने उस पर ऐसा जादू-सा कर दिया था कि उसे सब कुछ ठहरा हुआ-सा और अर्थहीन-सा लग रहा था। उसके भीतर-बाहर जैसे एक शून्य-सा व्याप्त हो गया था।


प्रश्न 2.
गंतोक को ‘मेहनकश बादशाहों का शहर’ क्यों कहा गया?
उत्तर-
गंतोक एक ऐसा पर्वतीय स्थल है जिसे वहाँ के मेहनतकश लोगों ने अपनी मेहनत से सुरम्य बना दिया है। वहाँ सुबह, शाम, रात सब कुछ सुंदर प्रतीत होता है। यहाँ के निवासी भरपूर परिश्रम करते हैं, इसीलिए गंतोक को मेहनतकश बादशाहों का शहर कहा गया है।

प्रश्न 3.
कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है?
उत्तर-
श्वेत पताकाएँ किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु पर फहराई जाती हैं। किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु हो जाए तो उसकी आत्मा की शांति के लिए नगर से बाहर किसी वीरान स्थान पर मंत्र लिखी एक सौ आठ पताकाएँ फहराई जाती हैं, जिन्हें उतारा नहीं जाता। वे धीरे-धीरे अपने-आप नष्ट हो जाती हैं।
किसी शुभ कार्य को आरंभ करने पर रंगीन पताकाएँ फहराई जाती हैं।

प्रश्न 4.
जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में क्या महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दीं, लिखिए।
उत्तर-
जितेन ने लेखिका को एक अच्छे गाइड की तरह सिक्किम की मनोहारी प्राकृतिक छटा, सिक्किम की भौगोलिक स्थिति और वहाँ के जनजीवन की जानकारियाँ इस प्रकार दीं-

  1. सिक्किम में गंतोक से लेकर यूमथांग तक तरह-तरह के फूल हैं। फूलों से लदी वादियाँ हैं।
  2. शांत और अहिंसा के मंत्र लिखी ये श्वेत पताकाएँ जब यहाँ किसी बुद्ध के अनुयायी की मौत होती है तो लगाई जाती हैं। ये 108 होती हैं।
  3. रंगीन पताकाएँ किस नए कार्य के शुरू होने पर लगाई जाती हैं।
  4. कवी-लोंग-स्टॉक-यहाँ ‘गाइड’ फिल्म की शूटिंग हुई थी।
  5. यह धर्मचक्र है अर्थात् प्रेअर व्हील। इसको घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं।
  6. यह पहाड़ी इलाका है। यहाँ कोई भी चिकना-चर्बीला आदमी नहीं मिलता है।
  7. नार्गे ने उत्साहित होकर ‘कटाओ’ के बारे में बताया कि ‘कटाओ हिंदुस्तान का स्विट्जरलैंड है।”
  8. यूमथांग की घाटियों के बारे में बताया कि बस पंद्रह दिनों में ही देखिएगा पूरी घाटी फूलों से इस कदर भर जाएगी कि लगेगा फूलों की सेज रखी हो।

प्रश्न 5.
लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत की आत्मा एक-सी क्यों दिखाई दी?
उत्तर-
लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका ने उसके बारे में पूछा तो पता चला कि यह धर्म-चक्र है। इसे घुमाने पर सारे पाप धुल जाते हैं। जितेन की यह बात सुनकर लेखिका को ध्यान आया कि पूरे भारत की आत्मा एक ही है। मैदानी क्षेत्रों में गंगा के विषय में भी ऐसी ही धारणा है। उसे लगा कि पूरे भारत की आत्मा एक-सी है। सारी वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद उनकी आस्थाएँ, विश्वास, अंध-विश्वास और पाप-पुण्य की अवधारणाएँ एक-सी हैं।

प्रश्न 6.
जितने नार्गे की गाइड की भूमिका के बारे में विचार करते हुए लिखिए कि एक कुशल गाइड में क्या गुण होते हैं?
उत्तर-
जितेन नार्गे लेखिका का ड्राइवर कम गाइड था। वह नेपाल से कुछ दिन पहले आया था जिसे नेपाल और सिक्किम की अच्छी जानकारी थी। क्षेत्र-से सुपरिचित था। वह ड्राइवर के साथ-साथ गाइड का कार्य कर रहा था। उसमें प्रायः गाइड के वे सभी गुण विद्यमान थे जो अपेक्षित होते हैं

  1. एक कुशल गाईड में उस स्थान की भौगोलिक, प्राकृतिक और सामाजिक जानकारी होनी चाहिए, वह नार्गे में सम्यक रूप से थी।
  2. गाइड के साथ-साथ नार्गे ड्राइवर भी था अतः कहाँ रुकना है? यह निर्णय वह स्वयं ही करने में समर्थ थी। उसे कुछ सलाह देने की आवश्यकता नहीं होती है।
  3. गाइड में सैलानियों को प्रभावित करने की रोचक शैली होनी चाहिए जो उसमें थी। वह अपनी वाक्पटुता से लेखिका को प्रभावित करता था; जैसे-“मैडम, यह धर्म चक्र है-प्रेअर व्हील, इसको घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं।”
  4. एक सुयोग्य गाइड क्षेत्र के जन-जीवन की गतिविधियों की भी जानकारी रखता है और संवेदनशील भी होता है।
  5. वह पर्यटकों में इतना घुल-मिल जाता है कि स्वयं गाने के साथ नाच उठता है। और सैलानी भी नाच उठते हैं। इस तरह आत्मीय संबंध बना लेता है।
  6. कुशल गाईड वाक्पटु होता है। वह अपनी वाक्पटुता से पर्यटन स्थलों के प्रति | जिज्ञासा बनाए रखता है। पताकाओं के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी देकर नार्गे उस स्थान के महत्व को बढ़ा देता है।

प्रश्न 7.
इस यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के जिन-जिन रूपों का चित्र खींचा है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
इस यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के पल-पल परिवर्तित होते रूप को देखा। ज्यों-ज्यों ऊँचाई पर चढ़ते जाएँ हिमालय विशाल से विशालतर होता चला जाता है। छोटी-छोटी पहाड़ियाँ विशाल पर्वतों में बदलने लगती हैं। घाटियाँ गहराती-गहराती पाताल नापने लगती हैं। वादियाँ चौड़ी होने लगती हैं, जिनके बीच रंग-बिरंगे फूल मुसकराते हुए नज़र आते हैं। चारों ओर प्राकृतिक सुषमा बिखरी नज़र आती है। जल-प्रपात जलधारा बनकर पत्थरों के बीच बलखाती-सी निकलती है। तो मन को मोह लेती है। हिमालय कहीं हरियाली के कारण चटक हरे रंग की मोटी चादर-सा नजर आता है, कहीं पीलापन लिए नज़र आता है। कहीं पलास्टर उखड़ी दीवार की तरह पथरीला नजर आता है।

प्रश्न 8.
प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को कैसी अनुभूति होती है?
उत्तर-
लेखिका प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर एकदम मौन, किसी ऋषि की तरह शांत होकर वह सारे परिदृश्य को अपने भीतर समेट लेना चाहती थी। वह रोमांचित थी, पुलकित थी।

उसे आदिम युग की अभिशप्त राजकुमारी-सी नीचे बिखरे भारी-भरकम पत्थरों पर झरने के संगीत के साथ आत्मा का संगीत सुनने जैसा आभास हो रहीं था। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे देश और काल की सरहदों से दूर बहती धारा बन बहने लगी हो। भीतर की सारी तामसिकताएँ और दुष्ट वासनाएँ इस निर्मल धारा में बह गई हों। उसका मन हुआ कि अनंत समय तक ऐसे ही बहती रहे और इस झरने की पुकार सुनती रहे।
प्रकृति के इस सौंदर्य को देखकर लेखिका को पहली बार अहसास हुआ कि यही चलायमान सौंदर्य जीवन का आनंद है।

प्रश्न 9.
प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए?
उत्तर-
प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को सड़क बनाने के लिए पत्थर तोड़ती, सुंदर कोमलांगी पहाड़ी औरतों का दृश्य झकझोर गया। उसने देखा कि उस अद्वितीय सौंदर्य से निरपेक्ष कुछ पहाडी औरतें पत्थरों पर बैठी पत्थर तोड़ रही थीं। उनके हाथों में कुदाल और हथौड़े थे और कइयों की पीठ पर डोको (बड़ी टोकरी) में उनके बच्चे भी बँधे थे। यह विचार उसके मन को बार-बार झकझोर रहीं था कि नदी, फूलों, वादियों और झरनों के ऐसे स्वर्गिक सौंदर्य के बीच भूख, मौत, दैन्य और जिजीविषा के बीच जंग जारी है।

प्रश्न 10.
सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में किन-किन लोगों का योगदान होता है, उल्लेख करें।
उत्तर-
सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव कराने में निम्न लोगों का योगदान , सराहनीय होता है

  1. वे सरकारी लोग जो व्यवस्था में संलग्न होते हैं।
  2. वहाँ के स्थानीय गाइड जो उस क्षेत्र की सर्वथा जानकारी रखते हैं।
  3. वहाँ के स्थानीय लोग जो सैलानियों के साथ रुचि से बातें करते हैं।
  4. वे सहयोगी यात्री जो यात्रा में मस्ती भरा माहौल बनाए रखते हैं और कभी निराश नहीं होते हैं। उत्साह से भरपूर होते हैं।

प्रश्न 11.
“कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं।” इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है?
उत्तर
किसी देश की आमजनता देश की आर्थिक प्रगति में बहुत अधिक अप्रत्यक्ष योगदान देती है। आम जनता के इस वर्ग में मज़दूर ड्राइवर, बोझ उठाने वाले, फेरीवाले, कृषि कार्यों से जुड़े लोग आते हैं। अपनी यूमथांग की यात्रा में लेखिका ने देखा कि पहाड़ी मजदूर औरतें पत्थर तोड़कर पर्यटकों के आवागमन के लिए रास्ते बना रही हैं। इससे यहाँ पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होगी जिसका सीधा-सा असर देश की प्रगति पर पड़ेगा। इसी प्रकार कृषि कार्यों में शामिल मजदूर, किसान फ़सल उगाकर राष्ट्र की प्रगति में अपना बहुमूल्य योगदान देते हैं।

प्रश्न 12.
आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है। इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए।
उत्तर-
प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने के क्रम में आज पहाड़ों पर प्रकृति की शोभा को नष्ट किया जा रहा है। वृक्षों को काटकर पर्वतों को नंगा किया जा रहा है। शुद्ध, पवित्र नदियों को विविध प्रकार से प्रदूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। नगरों का, फैक्टरियों का गंदा पानी पवित्र नदियों में छोड़ा जा रहा है। सुख-सुविधा के नाम पर पॉलिथिन का अधिक प्रयोग और वाहनों के द्वारा प्रतिदिन छोड़ा धुंआ पर्यावरण के संतुलन को बिगाड़ रहा है। इस तरह प्रकृति का गुस्सा बढ़ रहा है, मौसम में परिवर्तन आ रहा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं।

प्रकृति के साथ खिलवाड़ को रोकने में हम सहयोग दे सकते हैं

  1. वर्तमान में खड़े वृक्षों को न काटें और न काटने दें।
  2. यथासंभव वृक्षारोपण करें और दूसरों को वृक्षारोपण के लिए प्रेरित करें।
  3. वाहनों का प्रयोग यथासंभव कम करें। सब्जी लाने और व्यर्थ सड़कों पर घूमने | में वाहनों का उपयोग न करें।
  4. पॉलीथिन, अवशिष्ट पदार्थों तथा नालियों के गंदे पानी को नदियों में न जाने दें।

प्रश्न 13.
प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का जिक्र किया गया है? प्रदूषण के और कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आए हैं, लिखें।
उत्तर-
लेखिका को उम्मीद थी कि उसे लायुग में बर्फ देखने को मिल जाएगी, लेकिन एक सिक्कमी युवक ने बताया कि प्रदूषण के कारण स्नोफॉल कम हो गया है; अतः उन्हें 500 मीटर ऊपर कटाओ’ में ही बर्फ देखने को मिल सकेगी। प्रदूषण के कारण पर्यावरण में अनेक परिवर्तन आ रहे हैं। स्नोफॉल की कमी के कारण नदियों में जल-प्रवाह की मात्रा कम होती जा रही है। परिणामस्वरूप पीने योग्य जल की कमी सामने आ रही है। प्रदूषण के कारण ही वायु प्रदूषित हो रही । है। महानगरों में साँस लेने के लिए ताजा हवा का मिलना भी मुश्किल हो रहा है। साँस संबंधी रोगों के साथ-साथ कैंसर तथा उच्च रक्तचाप की बीमारियाँ बढ़ रही हैं। ध्वनि प्रदूषण मानसिक अस्थिरता, बहरेपन तथा अनिद्रा जैसे रोगों का कारण बन रहा है।

प्रश्न 14.
‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए?
उत्तर-
‘कटाओ’ को अपनी स्वच्छता और सुंदरता के कारण हिंदुस्तान का स्विट्जरलैंड कहा जाता है या उससे भी अधिक सुंदर। यह सुंदरता आज इसलिए विद्यमान है कि यहाँ कोई दुकान आदि नहीं है। यदि यहाँ भी दुकानें खुल जाएँ, व्यवसायीकरण हो जाए तो इस स्थान की सुंदरता जाती रहेगी, इसलिए कटाओं में दुकान का न होना उसके लिए वरदान है।

मनुष्य सुंदरता को देखकर प्रसन्न होता है तो मनुष्य ही सुंदरता को बिगाड़ता है। अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य का पालन न कर प्रयुक्त चीजों के अवशिष्ट को जहाँ-तहाँ फेंक सौंदर्य को ठेस पहुँचाए बिना नहीं रहता है। ‘कटाओ’ में दुकान न होने से व्यवसायीकरण नहीं हुआ है जिससे आने-जाने वाले लोगों की संख्या सीमित रहती है, जिससे यहाँ की सुंदरता बची है। जैसे दुकानें आदि खुल जाने से अन्य पवित्र स्थानों की सुंदरता जाती रही है वैसे ही कटाओ की सुंदरता भी मटमैली हो जाएगी।

प्रश्न 15.
प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है?
उत्तर-
प्रकृति ने जल-संचय की बड़ी अद्भुत व्यवस्था की है। प्रकृति सर्दियों में पर्वत शिखरों पर बर्फ के रूप में गिरकर जल का भंडारण करती है। हिम-मंडित पर्वत-शिखर एक प्रकार के जल-स्तंभ हैं, जो गर्मियों में जलधारा बनकर करोड़ों कंठों की प्यास बुझाते हैं। नदियों के रूप में बहती यह जलधारा अपने किनारे बसे नगर-गाँवों में जल-संसाधन के रूप में तथा नहरों के द्वारा एक विस्तृत क्षेत्र में सिंचाई करती हैं और अंततः सागर में जाकर मिल जाती हैं। सागर से जलवाष्प बादल के रूप में उड़ते हैं, जो मैदानी क्षेत्रों में वर्षा तथा पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फ के रूप में बरसते हैं। इस प्रकार ‘जल-चक्र’ द्वारा प्रकृति ने जल-संचयन तथा वितरण की व्यवस्था की है।

प्रश्न 16.
देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं? उनके प्रति हमारा क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए?
उत्तर-
देश की सीमाओं पर बैठे फौजी उन सभी विषमताओं में जूझते हैं जो सामान्य जनजीवन के लिए अति कठिन है। कड़कड़ाती ठंड जहाँ तापमान माइनस में चला जौता है, जहाँ पेट्रोल को छोड़ सब कुछ जम जाता है, वहाँ भी फौजी जम्न तैनाते रहते हैं। इसी तरह वे शरीर को तपा देने वाली गर्मियों के दिनों में रेगिस्तान में रहते हुए हाँफ-हॉफ कर अनेक विषमताओं से जूझते हुए कठिनाइयों का सामना करते हैं।

उनके प्रति हमारा दायित्व है कि हम उनका सम्मान करें, उन्हें देश की प्रतिष्ठा और गौरव को अक्षुण्ण रखने वाले महारथी के रूप में आदर दें। उनके और उनके परिवारों के प्रति सम्माननीय भाव तथा आत्मीय संबंध बनाए रखें। सैनिकों के दूर रहते हुए उनके हर कार्य में सहयोगी बनें। उन्हें अकेलेपन का एहसास न होने दें तथा उन्हें निराशा से बचाएँ।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

प्रश्न 1.
रात के सम्मोहन में डूबी लेखिका अपने बाहर-भीतर एक शून्यता की स्थिति महसूस कर रही थी। लेखिका ऐसी स्थिति से कब और कैसे मुक्त हुई ?
उत्तर-
लेखिका गंतोक की सितारों भरी रहस्यमयी रात देखकर सम्मोहित हो रही थी। सौंदर्यपूर्ण उन जादू भरे क्षणों में लेखिका अपने बाहर-भीतर शून्यता की स्थिति महसूस कर रही थी। उसकी यह स्थिति तब टूटी जब उसके होंठ एक प्रार्थना गुनगुनाने लगे–साना-साना हाथ जोड़ि गर्दहु प्रार्थना । हाम्रो जीवन तिम्रो कोसेली। इस प्रार्थना को आज ही सवेरे उसने एक नेपाली युवती से सीखा था।

प्रश्न 2.
सुबह-सुबह बालकनी की ओर भागकर लेखिका के हाथ निराशा क्यों लगी? उसके निराश मन को हलकी-सी सांत्वना कैसे मिली?
उत्तर-
सवेरे-सवेरे आँख खुलते ही लेखिका बालकनी की ओर इसलिए भागकर गई क्योंकि वह कंचनजंगा देखना चाहती थी। उसे यहाँ के लोगों ने बताया था कि मौसम साफ़ होने पर बालकनी से कंचनजंगा दिखाई देती है। मौसम अच्छा होने के बाद भी बादल घिरे थे, इसलिए कंचनजंगा न देख पाने के कारण उसके हाथ निराशा लगी। लेखिका ने रंग-बिरंगे इतने सारे फूल खिले देखे कि उसे लगा कि वह फूलों के बाग में आ गयी है। इससे उसके मन को हलकी-सी शांति मिली।

प्रश्न 3.
‘कवी-लोंग-स्टॉक’ के बारे में जितेन नार्गे ने लेखिका को क्या बताया?
उत्तर-
‘कवी-लोंग-स्टॉक’ के बारे में जितेन नार्गे ने लेखिका को यह बताया कि इसी स्थान पर ‘गाइड’ फ़िल्म की शूटिंग हुई थी। तिब्बत के चीस-खेबम्सन ने लेपचाओं के शोमेन से कुंजतेक के साथ संधि-पत्र पर यहीं हस्ताक्षर किए थे। यहाँ सिक्किम की दोनों स्थानीय जातियों लेपचा और भूटिया के बीच लंबे समय तक चले झगड़े के बाद शांतिवार्ता की शुरूआत संबंधी पत्थर स्मारक के रूप में मौजूद है।

प्रश्न 4.
ऊँचाई की ओर बढ़ते जाने पर लेखिका को परिदृश्य में क्या अंतर नज़र आए?
उत्तर-
लेखिका ज्यों-ज्यों ऊँचाई की ओर बढ़ती जा रही थी, त्यों-त्यों-

  • बाज़ार लोग और बस्तियाँ कम होती जा रही थीं।
  • चलते-चलते स्वेटर बुनने वाली नेपाली युवतियाँ और कार्टून ढोने वाले बहादुर नेपाली ओझल हो रहे थे।
  • घाटियों में बने घर ताश के बने घरों की तरह दिख रहे थे।
  • हिमालय अब अपने विराट रूप एवं वैभव के साथ दिखने लगा था।
  • रास्ते सँकरे और जलेबी की तरह घुमावदार होते जा रहे थे।
  • बीच-बीच में रंग-बिरंगे खिले हुए फूल दिख जाते थे।

प्रश्न 5.
यूमथांग के रास्ते में दोनों ओर बिखरे असीम सौंदर्य को देखकर लेखिका एवं अन्य सैलानियों की प्रतिक्रिया किस तरह अलग थी?
उत्तर-
गंतोक से युमथांग जाते समय रास्ते के दोनों किनारों पर असीम सौंदर्य बिखरा था। इस सौंदर्य को देखकर अन्य सैलानी झूमने लगे और सुहाना सफ़र और ये मौसम हँसी…।’ गीत गाने लगे, पर लेखिका की प्रतिक्रिया इससे हटकर ही थी। वह किसी ऋषि की भाँति शांत होकर सारे परिदृश्य को अपने भीतर समेट लेना चाहती थी। वह कभी आसमान छूते पर्वत शिखरों को देखती तो कभी दूध की धार की तरह झर-झर गिरते जल प्रपातों को, तो कभी नीचे चिकने-चिकने गुलाबी पत्थरों के बीच इठलाकर बहती, चाँदी की तरह कौंध मारती तिस्ता नदी को। ऐसा सौंदर्य देखकर वह रोमांचित हो गई थी।

प्रश्न 6.
‘सेवन सिस्टर्स वाटर फॉल’ को लेखिका ने किसका प्रतीक माना? उसका सौंदर्य देख लेखिका कैसा महसूस करने लगी?
उत्तर-
‘सेवन सिस्टर्स वाटर फॉल’ को लेखिका जीवन की अनंतता का प्रतीक मान रही थी। लेखिका को उस झरने से जीवन-शक्ति का अहसास हो रहा था। इसका सौंदर्य देख लेखिका को ऐसा लग रहा था जैसे वह स्वयं देश और काल की सीमाओं से दूर बहती धारा बनकर बहने लगी है। उसकी मन की तामसिकता इस निर्मल धारा में बह गई है। वह अनंत समय तक ऐसे बहते रहना चाहती है और झरने की पुकार सुनना चाहती है।

प्रश्न 7.
लेखिका ने ‘छाया’ और ‘माया’ का अनूठा खेल किसे कहा है?
उत्तर-
लेखिका ने यूमथांग के रास्ते पर दुर्लभ प्राकृतिक सौंदर्य देखा। ये दृश्य उसकी आँखों और आत्मा को सुख देने वाले थे। धरती पर कहीं गहरी हरियाली फैली थी तो कहीं हल्का पीलापन दिख रहा था। कहीं-कहीं नंगे पत्थर ऐसे दिख रहे थे जैसे प्लास्टर उखड़ी पथरीली दीवार हो। देखते ही देखते आँखों के सामने से सब कुछ ऐसे गायब हो गया, जैसे किसी ने जादू की छडी फिरा दी हो, क्योंकि बादलों ने सब कुछ ढक लिया था। प्रकृति के इसी दृश्य को लेखिका ने छाया और माया का खेल कहा है।

प्रश्न 8.
लेखिका ने किस चलायमान सौंदर्य को जीवन का आनंद कहा है? उसका ऐसा कहना कितना उचित है और क्यों?
उत्तर-
लेखिका ने निरंतरता की अनुभूति कराने वाले पर्वत, झरने, फूल, घाटियाँ और वादियों के दुर्लभ नज़ारों को देखकर आश्चर्य से सोचा कि पल भर में ब्रह्मांड में कितना घटित हो रहा है। निरंतर प्रवाहमान झरने, वेगवती तीस्ता नदी, उठती धुंध ऊपर मँडराते आवारा बादल, हवा में हिलते प्रियुता और रूडोडेंड्रो के फूल सभी लय और तान में प्रवाहमान हैं। ऐसा लगता है। कि ये चरैवेति-चरैवेति का संदेश दे रहे हैं। उसका ऐसा कहना पूर्णतया उचित है क्योंकि इसी चलायमान सौंदर्य में जीवन का वास्तविक आनंद छिपा है।

प्रश्न 9.
लेखिका ने पहाड़ी औरतों और आदिवासी औरतों में क्या समानता महसूस की?
उत्तर
लेखिका ने देखा कि कोमल कायावाली औरतें हाथ में कुदाल और हथौड़े लिए भरपूर ताकत से पत्थरों पर मार रही थीं। इनमें से कुछ की पीठ पर बँधी डोको में उनके बच्चे भी बँधे थे। वे भूख से लड़ने के लिए मातृत्व और श्रम साधना साथ-साथ ढो रही थीं। ऐसा ही पलामू और गुमला के जंगलों में लेखिका ने देखा था कि आदिवासी युवतियाँ पीठ पर बच्चे को कपड़े से बाँधकर पत्तों की तलाश में वन-वन डोलती थीं। उनके पाँव फूले हुए थे और इधर पहाड़ी औरतों के हाथों में श्रम के कारण गाँठे पड गई थीं।

प्रश्न 10.
पहाड़ के निवासियों का जीवन परिश्रमपूर्ण एवं कठोर होता है, सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
पहाड़ के निवासी परिश्रम करते हुए कठोर जीवन जीते हैं। उन्हें अपनी रोजी-रोटी के लिए इतना श्रम करना पड़ता है कि वहाँ कोई बर्बाला नहीं दिखता है। वहाँ की औरतें शाम तक गाएँ चराती हैं और लौटते समय लकड़ियों के भारी भरकम गट्ठर लादे आती हैं। बहुत-सी औरतें पहाड़ों को तोड़कर सड़क बनाने, उन्हें चौड़ा करने जैसे कठोर परिश्रम और खतरनाक कार्यों में लगी हैं। यहाँ के बच्चों को तीन-चार किलोमीटर दूर स्कूल जाना पड़ता है। वे लौटते समय लकड़ियों का गठ्ठर साथ लाते हैं।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
गरमियों में बरफ़ शिलाएँ पिघलकर हमारी प्यास बुझाती हैं? ऐसा लेखिका की सहेली ने किस संदर्भ में कहा? बढ़ते जल प्रदूषण को दूर करने के लिए आप क्या-क्या करना चाहेंगे?
उत्तर-
गरमियों में बरफ़ शिलाएँ पिघलकर हमारी प्यास बुझाती हैं। ऐसा लेखिका की सहेली ने प्रकृति द्वारा जल संरक्षण की अद्भुत व्यवस्था के संदर्भ में कहा है। प्रकृति सरदियों में बरफ़ के रूप में जल संग्रह कर लेती है और गरमियों में पानी के लिए हाय-तौबा मचने पर ये बरफ़ शिलाएँ पिघल-पिघलकर हमारी प्यास बुझाती हैं। बढ़ते जल प्रदूषण को दूर करने के लिए मैं निम्नलिखित उपाय एवं कार्य करना चाहूँगा-

  • नंदियों, झीलों तथा तालाबों में दूषित जल मिलने से रोकने के लिए लोगों को जागरूक करूंगा।
  • फैक्ट्रियों का रसायनयुक्त कचरा इनमें मिलने से बचाने का अनुरोध करूंगा।
  • पूजा-पाठ की अवशिष्ट सामग्री नदियों में न डालने का अनुरोध करूंगा।
  • जल स्रोतों के निकट गंदगी न फैलाने का अनुरोध करूंगा।

प्रश्न 2.
‘जाने कितना ऋण है हम पर इन नदियों का’ लेखिका ने ऐसा क्यों कहा है? इन नदियों का ऋण चुकाने के लिए। आप क्या-क्या करना चाहेंगे?
अथवा
नदियों का हम पर ऋण होने पर भी हमारी आस्था इनके लिए घातक सिद्ध हो रही है, कैसे? आप नदियों को साफ़ रखने के लिए क्या-क्या करना चाहेंगे?
उत्तर
‘जाने कितना ऋण है हम पर इन नदियों का’ लेखिका ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि नदियों का पानी हमारी प्यास बुझाकर जीवन का आधार बन जाता है तो दूसरी ओर सिंचाई के काम आकर अन्न के रूप में हमारा पोषण करता है, फिर भी हम इन नदियों को विविध तरीकों से प्रदूषित एवं गंदा करते हैं। एक ओर इनमें गंदापानी मिलने देते हैं तो दूसरी ओर पुण्य पाने के लिए पूजा-पाठ की बची सामग्री, मूर्तियाँ, फूल मालाएँ डालते हैं तथा स्वर्ग पाने की लालसा में इनके किनारे लाशें जलाते हैं तथा इनमें राख फेंककर इन्हें प्रदूषित करते हैं।
इन नदियों का ऋण चुकाने के लिए हमें-

  • इनकी सफ़ाई पर ध्यान देना चाहिए तथा इनके किनारे गंदगी नहीं फैलाना चाहिए।
  • इनमें न जानवरों को नहलाना चाहिए और न कपड़े या बर्तन धोना चाहिए।
  • नालों एवं फैक्ट्रियों का पानी शोधित करके इनमें मिलने देना चाहिए।
  • पूजा-पाठ की मूर्तियाँ और अन्य सामग्री नदियों में फेंकने के बजाय जमीन में गाड़ देना चाहिए तथा लाशें जलस्रोतों से दूर जलाना चाहिए।

प्रश्न 3.
‘साना-साना हाथ जोड़ि’ पाठ में कहा गया है कि ‘कटाओ’ पर किसी दुकान का न होना वरदान है, ऐसा क्यों? भारत के अन्य प्राकृतिक स्थानों को वरदान बनाने में युवा नागरिकों की क्या भूमिका हो सकती है? (CBSE. S.P 2015)
उत्तर
लेखिका सिक्किम की यात्रा के क्रम में गंतोक, यूमथांग गई पर वहाँ उसे बरफ़ देखने को नहीं मिली, क्योंकि इन स्थानों पर बाज़ार एवं दुकानें होने से पर्याप्त व्यावसायिक गतिविधियाँ होती थीं। यहाँ प्रदूषण की मात्रा अधिक होने से आसपास का तापमान भी बढ़ा था पर कटाओं की स्थिति एकदम विपरीत थी। वहाँ कोई दुकान न होने से न प्रदूषण था और न तापमान में वृद्धि। इससे वहाँ बरफ़ गिरना पहले जैसा ही जारी था। वहाँ दुकान न होना उसके लिए वरदान था। भारत के अन्य प्राकृतिक स्थानों को वरदान बनाने के लिए युवाओं को-

  • वहाँ साफ़-सफ़ाई रखनी चाहिए तथा खाने के खाली पैकेट, गिलास यहाँ-वहाँ नहीं फेंकना चाहिए।
  • वहाँ मिलने वाले कूड़े को जलाने के बजाए ज़मीन में दबा देना चाहिए।
  • वहाँ व्यावसायिक गतिविधियों को बंद करा देना चाहिए।
  • सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करना चाहिए।
  • तेज़ आवाज़ में संगीत नहीं बजाना चाहिए।
  • वहाँ किसी वस्तु को जलाने से बचना चाहिए।

प्रश्न 4.
देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी कई तरह से कठिनाइयों का मुकाबला करते हैं। सैनिकों के जीवन से किन-किन जीवन मूल्यों को अपनाया जा सकता है? (SA II All India-2015)
उत्तर-
देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में देश की रक्षा करते हुए कठिनाइयों का मुकाबला करते हैं। ये फ़ौजी रेगिस्तान की गरम लू तथा पचास डिग्री सेल्सियस से अधिक गरमी में हॉफ-हॉफकर देश की चौकसी करते हैं। दूसरी ओर ये भारत के उत्तरी एवं पूर्वोत्तर राज्यों की सीमा पर माइनस पंद्रह डिग्री सेल्सियस में काम करते हैं। वे पेट्रोल के अलावा सब कुछ जमा देने वाले वातावरण की भी परवाह नहीं करते हैं।

ये फ़ौजी खुद रात-रात भर जागकर देशवासियों को चैन की नींद सोने का अवसर देते हैं। इन विपरीत स्थितियों में काम करते हुए उन्हें समय-असमय दुश्मन की गोलियों का सामना करना पड़ जाता है, पर वे अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटते हैं। इन सैनिकों के जीवन से हमें मातृभूमि से असीम लगाव, देश प्रेम, देशभक्ति, देश के लिए सर्वस्व समर्पण की भावना, देश-हित को सर्वोपरि समझने, मातृभूमि के लिए प्राणों की बाजी लगाने, कर्तव्य के प्रति सजग रहने तथा त्याग करने जैसे जीवन मूल्य अपनाना चाहिए।

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