Class 12 Hindi Antra Chapter 17 Summary – Sher Pehchan Char Hath Sajha Summary Vyakhya

शेर, पहचान, चार हाथ, साझा Summary – Class 12 Hindi Antra Chapter 17 Summary

शेर, पहचान, चार हाथ, साझा – असगर वजाहत – कवि परिचय

प्रश्न :
असगर वजाहत का संक्षिप्त जीवन-परिचय बेते हुए उनकी रचनाओं और भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।?
उत्तर :
जीवन-परिचय : असगर वजाहत का जन्म 1946 ई. में फतेहपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा फतेहपुर में हुई तथा विश्वविद्यालय स्तर की पढ़ाई उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से की। सन् 1955-56 मे ही असगर वजाहत ने लेखन कार्य प्रारंभ कर दिया था। प्रारंभ में उन्होंने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखन कार्य किया, बाद में वे दिल्ली के जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य करने लगे। वजाहत ने कहानी, उपन्यास, नाटक तथा लघु कथा तो लिखी ही हैं, साथ ही उन्होंने फिल्मों और धारावाहिकों के लिए पटकथा लेखन का काम भी किया है।

उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं : दिल्ली पहुँचना है, स्विमिंग पूल और सब कहाँ कुछ, आधी बानी; मैं हिंदू हूँ (कहानी संग्रह) फिरंगी लौट आए, इन्ना की आवाज, वीरगति, समिधा, जिस लाहौर नई देख्या तथा अकी (नाटक) सबसे सस्ता गोश्त (नुक्कड़ नाटकों का संग्रह) और रात में जागने वाले, पहर दोपहर तथा सात आसमान, कैसी अंगि लगाई (प्रमुख उपन्यास)। भाषा-शैली : असगर वजाहत की भाषा में गांभीर्य, सबल भावाभिव्यक्ति एवं व्यंग्यात्मकता है। मुहावरों तथा तद्भव शब्दों के प्रयोग से उसमें सहजता एवं सादगी आ गई है। असगत वजाहत ने ‘गजल की कहानी’ वृत्तचित्र का निर्देशन किया है तथा ‘बूँद-बूँद’ ‘ धारावाहिक का लेखन भी किया है।

एड संकलित लघु कथाओं का संक्षिप्त परिचय –

प्रतिपाद्य –

शेर, पहचान, चार हाथ और साझा नाम से उनकी चार लघुकथाएँ दी गई हैं।
1. ‘शेर’ प्रतीकात्मक और व्यंग्यात्मक लघुकथा है। शेर व्यवस्था का प्रतीक है जिसके पेट में जंगल के सभी जानवर किसी-न-किसी प्रलोभन के चलते समाते चले जा रहे हैं। ऊपर से देखने पर शेर अहिंसावादी, न्यायप्रिय और बुद्ध का अवतार प्रतीत होता है पर जैसे ही लेखक उसके मुँह में प्रवेश न करने का इरादा करता है शेर अपनी असलियत में आ जाता है और दहाड़ता हुआ उसकी ओर झपटता है। तात्पर्य यह है कि सत्ता तभी तक खामोश रहती है जब तक सब उसकी आज्ञा का पालन करते रहें। जैसे ही कोई उसकी व्यवस्था पर उँगली उठाता है या उसकी आज्ञा का मानने से इनकार करता है. वह खूँखार हो उठता है और विरोध में उठे स्वर को कुचलने का प्रयास करती है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने सुविधाभोगियों, छद्म क्रांतिकारियों, अहिंसावादियों और सह-अस्तित्ववादियों के ढोंग पर भी प्रहार किया है।

2. ‘पहचान’ में राजा को बहरी, गूँगी और अंधी प्रजा पसंद आती है जो बिना कुछ बोले, बिना कुछ सुने और बिना कुछ देखे उसकी आज्ञा का पालन करती रहे। कहानीकार ने इसी यथार्थ की पहचान कराई है। भूमंडलीकरण और उदारीकरण के दौर में इन्हें प्रगति और उत्पादन से जोड़कर संगत और जरूरी भी उहराया जा रहा है। इस छद्य प्रगति और विकास के बहाने राजा उत्पादन के सभी साधनों पर अपनी पकड़ मजबूत करता जाता है। वह लोगों के जीवन को स्वर्ग जैसा बनाने का झाँसा देकर अपना जीवन स्वर्गमय बनाता है। वह जनता को एकजुट होने से रोकता है और उन्हें भुलावे में रखता है। यही उसकी ‘सफलता’ का राज है।

3. ‘चार हाथ’ पूँजीवादी व्यवस्था में मजदूरों के शोषण को उजागर करती है। पूँजीपति भॉँति-भाँति के उपाय कर मजदूरों को पंगु बनाने का प्रयास करते हैं। वे उनके अहम् और अस्तित्व को छिन्न-भिन्न करने के नए-नए तरीके ढूँढते हैं और अंततः: उनकी अस्मिता ही समाप्त कर देते हैं। मजदूर विरोध करने की स्थिति में नहीं हैं। वे मिल के कल-पुर्जें बन गए हैं और लाचारी में आधी मजदूरी पर भी काम करने के लिए तैयार हैं। मजदूरों की यह लाचारी शोषण पर आधारित व्यवस्था का पर्दाफाश करती है।

4. ‘साझा’ में उद्योगों पर कब्जा जमाने के बाद पूँजीपतियों की नजर किसानों की जमीन और उत्पाद पर जमी है। गाँव का प्रभुत्वशाली वर्ग भी इसमें शामिल है। वह किसान को साझा खेती करने का झाँसा देता है और उसकी सारी फसल हड़प लेता है। किसान को पता भी नहीं चलता और उसकी सारी कमाई हाथी के पेट में चली जाती है। यह हाथी और कोई नहीं, बल्कि समाज का धनाद्य और प्रभुत्वशाली वर्ग है जो किसानों को धोखे में डालकर उसकी सारी मेहनत हड़प कर जाता है। यह कहानी आजादी के बाद किसानों की बदहाली का वर्णन करते हुए उसके कारणों की भी पड़ताल करती है।

Sher Pehchan Char Hath Sajha Class 12 Hindi Summary

1. शेर : लेखक शहर के आदमियों से डरकर जंगल में चला गया था। वहाँ उसने पहले ही दिन बरगद के पेड़ के नीचे बैठे एक शेर को देखा। पहली नजर में वह गौतम बुद्ध का प्रतिरूप नजर आया क्योंकि लेखक बरगद के पेड़ के नीचे गौतम बुद्ध को देखने का आदी हो चुका था। शेर का मुँह खुला हुआ था। वह डर के मारे एक झाड़ी के पीछे छिप गया। लेखक ने देखा कि जंगल के छोटे-मोटे जानवर शेर के मुँह में समाते चले जा रहे हैं। शेर बिना हिले-डुले, बिना चबाए जानवरों को गटकता चला जा रहा था। यह दृश्य देखकर लेखक बेहोश होते-होते बचा।

अगले दिन उसने एक गधे को शेर के मुँह की तरफ जाते देखा। लेखक के पूछने पर उसने बताया कि वहाँ हरी घास का मैदान है। मुझे वहाँ खाने को हरी-हरी घास खूब मिलेगी। लेखक ने उसे चेताया कि वह शेर का मुँह है। गधा बोला कि वह शेर का मुँह जरूर है, पर वहाँ है हरी घास का मैदान। इतना कहकर वह शेर के मुँह में चला गया। लोमड़ी भी शेर के मुँह में इसलिए चली गई क्योंकि उसे बताया गया था कि शेर के मुँह के अंदर रोजगार दिलाने का दफ्तर है। उल्लू ने भी शेर के मुँह के अंदर स्वर्ग बताया। उसे शेर के मुँह में जाना ही निर्वाण का एकमात्र रास्ता नजर आया। अगले दिन कुत्तों का जुलूस भी शेर की तरफ बढ़ता चला गया और उसके मुँह में चला गया।

कुछ दिनों बाद लेखक ने सुना कि शेर अहिंसा और सह-अस्तित्ववाद का बहुत बड़ा समर्थक है। अब वह जंगली जानवरों का शिकार नहीं करता। लेखक ने शेर की सच्चाई जाननी आही। उसे बताया गया कि शेर के पेट में वास्तविक रोजगार-दफ्तर है जबकि बाहर का रोजगार दफ्तर मिध्या है। लेखक ने जब शेर के मुँह में जाने से इंकार कर दिया तब शेर गौतम बुद्ध वाली मुद्रा त्यागकर दहाड़ा और ड़स पर झपट पड़ा।

यह लघुकथा यह बताती है कि सत्ता (प्रतीक शेर) तभी तक चुप रहती है जब तक उसकी आज्ञा का पालन किया जाता रहे। जैसे ही कोई व्यवस्था पर उँगली उठाता है, तब यह सत्ता आक्रामक रूप धारण कर लेती है और उसे कुचलने का हरसंभव प्रयत्न करती है।

2. पहचान : राजा हुक्म देता है कि सभी लोग अपनी आँखें बंद रखें ताकि उन्हें शांति मिल सके। लोगों ने राजा की आज्ञा का पालन किया क्योंकि यही उनका धर्म है। जनता आँखें बंद किए ही अपने सारे काम करती थी। आश्चर्य की बात यह थी काम पहले के मुकाबले में बहुत अधिक और अच्छा हो रहा था। फिर राजा का हुक्म हुआ कि लोग अपने कानों में पिघला हुआ सीसा डलवा लें ताकि कुछ सुन न सकें। राजा के अनुसार सुनना जिंदा रहने के लिए कतई जरूरी नहीं है। लोगों ने इस आज्ञा का भी पालन किया। उत्पादन और भी बढ़ गया। फिर राजा का हुक्म हुआ कि लोग अपने-अपने होंठ सिलवा लें। तर्क यह था कि बोलना उत्पादन में बाधक होता है। लोगों ने काफी सस्ती दरों पर अपने होंठ सिलवा लिए, पर अब वे खा नहीं सकते थे लेकिन खाना भी काम करने के लिए जरूरी नहीं माना गया। उन्हें कई तरह की चीजें कटवाने और जुड़वाने के हुक्म मिलते रहे और वे वैसा ही करते रहे। शासन दिन-प्रतिदिन प्रगति करता रहा।

एक दिन खैराती, रामू और छिद्यू (आम जनता के प्रतीक) ने सोचा कि आँख खोलकर देखा जाए क्योंकि अब तक तो देश स्वर्ग बन गया होगा। जब तीनों ने आँखें खोलीं तो उन सबको अपने सामने केवल राजा दिखाई दिया। वे एक-दूसरे को देख न सके। यह लघुकथा हमें बताती है राजा को गूँगी, बहरी और अंधी प्रजा पसंद आती है। वह हरसंभव प्रयास करता है कि प्रजा की पहचान खो जाए और वह केवल राजा की ओर ही देखती रहे। वह जनता को एकजुट होने से रोकने को ही अपनी सफलता मानता है।

3. चार हाथ : एक मिल मालिक (पूँजीपति) के दिमाग में बड़े विचित्र ख्याल आया करते थे। वह सोचता था कि सारा संसार मिल बन जाएगा और वहाँ अन्य चीजों की तरह आदमी भी बनने लगेंगे। वह सोचता कि यदि मजदूर के दो के स्थान पर चार हाथ हों तो काम बहुत तेजी से होगा और उसका मुनाफा भी बढ़ जाएगा। उसने यह काम वैज्ञानिकों से कराने की बात सोची अतः बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को मोटी तनख्वाहों पर नौकर रखा। कई साल के प्रयोगों के बाद वैज्ञानिकों ने इसे असंभव बताया। मिल मालिक वैज्ञानिकों से नाराज हो गया और उन्हें नौकरी से निकाल दिया।

वह स्वयं इस काम को पूरा करने में जुट गया। उसने कटे हुए हाथ मागवाए और उन्हें अपने मजदूरों में फिर करवाना चाहा, पर यह हो न सका। फिर उसने मजदूरों को लकड़ी के हाथ लगवाने चाहे, पर उसका उनसे काम न हो सका। फिर उसने लोहे के हाथ फिट करवाए, पर मजदूर मर गए। आखिर में उसके एक बात समझ में आ गई। उसने मजदूरों की मजदूरी आधी कर दी और उसी पैसे में दुगुने मजदूर रख लिए।

यह लघुकथा पूँजीवादी व्यवस्था में मजदूरों के शोषण को उजागर करती है। पूँजीपति तरह-तरह के उपाय करके श्रमिक को पंगु बनाता है तथा मनचाहे ढंग से उसका शोषण करता है, मजदूर विरोध की स्थिति में नहीं होते।

4. साझाः किसान यद्यपि खेती की बारीकियों से परिचित था, पर डरा दिया गया था। अतः वह अकेले खेती करने का साहस नहीं जुटा पा रहा था। पहले वह शेर, चीते और मगरमच्छ के साथ साझे की खेती कर चुका था। अब हाथी (प्रभुत्वशाली वर्ग का प्रतीक) उससे अपने साथ साझे की खेती करने की जिद कर रहा था। हाथी उसे साझे की खेती के लाभ समझाता है कि इससे छोटे-मोटे जानवर खेतों को नुकसान नहीं पहुँचा पाएँगे। किसान अंतत: तैयार हो गया। उसने हाथी से मिलकर गन्ना बोया। हाथी ने गन्ने की खेती में अपने साझे का पूरे जंगल में प्रचार कर दिया। किसान फसल की सेवा करता रहा। जब गन्ने तैयार हो गए तो वह हाथी को खेत पर बुला लाया। वह चाहता था कि फसल आधी-आधी बाँट ली जाए। इस पर हाथी बिगड़ गया। वह बोला, “अपने और पराए की बात मत करो। हम दोनों ने मिलकर मेहनत की थी, हम दोनों उसके स्वामी हैं। आओ, हम मिलकर गन्ने खाएँ।”

गन्ने का एक छोर हाथी की सूँड में था और दूसरा आदमी के मुँह में। जब आदमी गन्ने के साथ-साथ हाथी की तरफ खिंचने लगा तब उसने गन्ना छोड़ दिया। हाथी बोला, “देखो, हमने एक गन्ना खा लिया।” इस तरह उनके साझे की खेती बँट गई। यह लघुकथा बताती है कि किस तरह गाँव का प्रमुख वर्ग किसानों की फसल को साझे का झाँसा देकर हड़प कर जाता है।

शब्दार्थ एवं टिप्पणी –

सींग निकलना = इसका प्रयोग प्रतीक रूप में किया गया है। गधे के सिर पर सींग निकलने की कहावत आपने सुनी होगी। यहाँ इसी कहावत को प्रतीक के रूप में प्रयुक्त किया गया है। यहाँ इसका अर्थ है, व्यवस्था से अलग रहना, बनी बनाई लीक से अलग चलना। (Opposition of Tradition), डुग्गी पीटना = प्रचार करना, पुराने जमाने में डुग्गी (एक प्रकार का वाद्य) बजाकर लोगों को एकत्र किया जाता था और जरूरी सूचना सुनाई जाती थी। (Toadvertise), पड्टी पढ़ाना = झाँसा देना, बेवकूफ बनाकर ठगना। (Cheating), निर्वाण = जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति (To get salvation), उल्लू बनाना = मूर्ख बनाना (To befool), मिध्या = झूठा (False), सह अस्तित्ववाद = साथ-साथ रहना (Co-existence), समर्थक = समर्थन करने वाला (Supporter), मुद्रा = दशा, स्थिति (Posture)।

शेर, पहचान, चार हाथ, साझा सप्रसंग व्याख्या

1. मैं तो शहर से या आदमियों से डरकर जंगल इसलिए भागा था कि मेरे सिर पर सींग निकल रहे थे और डर था कि किसी ने किसी दिन कसाई की नजर मुझ पर जरूर पड़ जाएगी।

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश असगर वजाहत द्वारा रचित लघुकथा शेर से अवतरित हैं। इसमें लेखक शेर को व्यवस्था का प्रतीक मानता है जिसके पेट में जंगल के सभी जानवर किसी न किसी प्रलोभन के चलते समाते जा रहे हैं।

व्याख्या : लेखक बताता है कि वह अपनी सत्ता से तंग आकर दूसरे की सत्ता में जाता है। वह अपनी सत्ता से दुःखी हैं क्योंकि वहाँ केवल स्वार्थ का बोलबाला है। तब उसने सोचा कि शायद दूसरे की सत्ता में उसे सुख प्राप्त होगा। वह अपने संगी-साथियों को छोड़कर दूसरी जगह जाता है। वह कसाई की नजर से बचना चाहता था, पर उसकी यह इच्छा पूरी न हो सकी। वहाँ भी एक शेर था। यह शेर नई व्यवस्था का प्रतीक है। इसे देखकर लेखक भयभीत हो जाता है क्योंकि शेर (सत्ता) के मुख पर क्रोध झलकता है।

विशेष :

  1. प्रतीकात्मक शैली अपनाई गई है।
  2. शेर को व्यवस्था का प्रतीक बताया गया है।
  3. भाषा सहज एवं सरल है।

2. जंगल में मेरा पहला ही दिन था। जब मैंने बरगद के पेड़ के नीचे एक शेर को बैठे हुए देखा। इससे पहले चूँकि चित्रों में आँखें बरगद के पेड़ के नीचे गौतम बुद्ध को देखने की आदी थीं इसलिए पहली नजर में शेर गौतम बुद्ध नजर आया लेकिन शेर का मुँह खुला हुआ था। शेर का खुला मुँह देखकर मेरा जो हाल होना था, वही हुआ, यानी मैं डर के मारे एक झाड़ी के पीछे छिप गया। मैंने देखा कि झाड़ी की ओट भी गजब की चीज है। अगर झाड़ियाँ न हों तो शेर का मुँह-ही-मुँह हो और फिर उससे बच पाना बहुत कठिन हो जाए। कुछ देर के बाद मैंने देखा कि जंगल के छोटे-मोटे जानवर एक लाइन से चले आ रहे हैं और शेर के मुँह में घुसते चले जा रहे हैं। शेर बिना हिले-डुले, बिना चबाए, जानवरों को गटकता जा रहा है। यह दृश्य देखकर मैं बेहोश होते-होते बचा।

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश असगर वजाहत द्वारा रचित लघुकथा ‘शेर’ से अवतरित है। यह एक प्रतीकात्मक एवं व्यंग्यात्मक लघुकथा है। शेर व्यवस्था का प्रतीक है जिसके पेट में जंगल के जानवर प्रलोभन में आकर समा जाते हैं।

व्याख्या : लेखक शहर से भागकर जंगल में चला गया। अभी उसका जंगल में पहला ही दिन था। वहाँ उसने एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठे एक शेर को देखा। लेखक इससे पहले चित्रों में बरगद के पेड़ के नीचे गौतम बुद्ध को देखता रहा था अत: उसे पहली नजर में शेर गौतम बुद्ध के रूप में नजर आया। (सत्ताधारी पहले ऐसा ही लगता है।) उस समय शेर का मुँह खुला हुआ था। शेर को इस रूप में देखकर लेखक का बुरा हाल हो गया। वह डरकर झाड़ी के पीछे जा छिपा। लेखक को झाड़ी का महत्त्व समझ आ गया। यदि झाड़ी न हो तो केवल शेर का मुँह-ही-मुँह रह जाएगा और इससे बचना मुश्किल हो जाएगा। (निरंकुश सत्ता से बचना कठिन हो जाएगा) लेखक ने कुछ देर बाद देखा कि जंगल के छोटे-मोटे जानवर शेर की तरफ चले आ रहे हैं और वे उसके मुँह में समाते जा रहे हैं। शेर अपने स्थान पर बैठे-बैठे बिना विशेष प्रयास किए इन जानवरों को गटकता जा रहा है। यही दशा व्यवस्था की होती है। वह भोली-भाली जनता को अपने चंगुल में फँसाती चली जाती है। लोग उसका शिकार होते रहते हैं।

विशेष :

  1. प्रतीकात्मकता का समावेश है।
  2. सीधी-सरल भाषा-शैली अपनाई गई है।

3. अगले दिन मैंने कुत्तों के एक बहुत बड़े जुलूस को देखा जो कभी हैंसते-गाते थे और कभी विरोध में चीखते-चिल्नाते थे। उनकी बड़ी-बड़ी लाल जीभें निकली हुई थीं, पर सब दुम दबाए थे। कुत्तों का यह जुलूस शेर के मुँह की तरफ बढ़ रहा था। मैंने चीखकर कुत्तों को रोकना चाहा, पर वे नहीं रुके और उन्होंने मेरी बात अनसुनी कर दी। वे सीधे शेर के मुँह में चले गए।
उत्तर :
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश असगर वजाहत द्वारा रचित व्यंग्य कथा ‘शेर’ से अवतरित है। इसमें शेर व्यवस्था का प्रतीक है जिसके पेट में जंगल के सभी जानवर किसी न किसी प्रलोभन के चलते समाते चले जाते हैं।

व्याख्या : लेखक ने एक दिन देखा कि कुते एक जुलूस के रूप में चले आ रहे थे। ये वही कुत्ते थे जो कभी तरह-तरह की हरकतें करते रहते थे, कभी हँसते थे तो कभी गाते थे। कभी-कभी वे चीखते-चिल्लाते भी थे। अब उनकी ये सभी प्रकार की हरकतें शांत थी। उनकी बड़ी-बड़ी लाल जीभें तो निकल रही थीं पर अब वे दुम दबाकर चल रहे थे। अब वे चुपचाप जुलूस बनाकर शेर की ओर बढ़े चले जा रहे थे। व्यवस्था का ऐसा ही प्रभाव होता है, वह बड़े बड़ों को चुप करा देता है। इस समय वे किसी की नहीं सुनते। लेखक ने भी उनको रोकना चाहा था, पर उन्होने उसकी बात अनसुनी कर दी। वे सीधे शेर के मुँह में चले गए। इसी प्रकार कितने ही प्राणियों को व्यवस्था लील जाती है।

विशेष :

  1. प्रतीकात्मकता का समावेश हुआ है।
  2. लेखक ने सुविधाभोगियों छद्म क्रांतिकारियों और सह अस्तित्वादियों के ढोंग पर करारा व्यंग्य किया है।
  3. सरल एवं सुबोध भाषा का प्रयोग किया गया है।

4. मैंने देखा कि झाड़ी की ओर भी गज़ब की चीज़ है। अगर झाड़ियाँ न हों तो शेर का मुँह ही मुँह हो और फिर उससे बच पाना बहुत कठिन हो जाए। कुछ देर के बाद मैंने देखा कि जंगल के छोटे-मोटे जानवर एक लाइन से चले आ रहे हैं और शेर के मुँह में घुसते चले जा रहे हैं। शेर बिना हिले-डुले, बिना चबाए, जानवरों को गटकता जा रहा है। यह दृश्य देखकर मैं बेहोश होते-होते बचा।

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश असगर वजाहत द्वारा रचित लघुकथा ‘शेर’ से अवतरित है। यह एक प्रतीकात्मक एवं व्यंग्यात्मक लघुकधा है। शेर व्यवस्था का प्रतीक है जिसके पेट में जंगल के सभी जानवर किसी न किसी प्रलोभन के चलते समाते जा रहे हैं।

व्याख्या : लेखक जंगल में जाकर बरगद के पेड़ के नीचे बैठे शेर को देखता है। उसका खुला मुँह देखकर लेखक का बुरा हाल हो जाता है। वह डर के मारे एक झाड़ी के पीछे छिप जाता है। वहाँ जाकर लेखक को अहसास होता है कि झाड़ी की ओट भी बड़ी गजब की चीज है। यहाँ आकर छिपा तो जा सकता है। यदि झाड़ी न हो और केवल शेर का मुँह ही मुँह हो तो उससे बच पाना कठिन है। थोड़ी देर बाद लेखक ने देखा कि जंगल के अनेक छोटे-मोटे जानवर एक लाइन बनाकर शेर की ओर बढ़े चले आ रहे हैं और बारी-बारी से शेर के मुँह में घुसते चले जा रहे हैं। बिना कोई प्रयास किए शेर का भोजन स्वयं उसके पास आ रहा है। शेर भी बिना हिले-डुले और इन जानवरों को चबाए बिना निगलता चला जा रहा है। इस दृश्य को देखकर लेखक बड़ी मुश्किल से बेहोश होते-होते बच सका।

विशेष :

  1. प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग किया गया है। शेर व्यवस्था का प्रतीक है। व्यवस्था लोगों को अपना शिकार बनाती है।
  2. सरल और सहज भाषा का प्रयोग किया गया है।

5. कुछ दिनों के बाद मैंने सुना कि शेर अहिंसा और सह-अस्तित्ववाद का बड़ा जबरदस्त समर्थक है इसलिए जंगली जानवरों का शिकार नहीं करता। मैं सोचने लगा, शायद शेर के पेट में वे सारी चीजें हैं जिनके लिए लोग वहाँ जाते हैं और मैं भी एक दिन शेर के पास गया। शेर आँखें बंद किए पड़ा था और उसका स्टॉफ आफिस का काम निपटा रहा था। मैंने वहाँ पूछा। “क्या यह सच है कि शेर साहब के पेट के अंदर, रोजगार का दफ्तर है?”

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण असगर वजाहत द्वारा लिखित ‘शेर’ नामक लघुकथा से अवतरित है। इसमें लेखक ने शेर को व्यवस्था का प्रतीक माना है और उसकी कार्य प्रणाली पर व्यंग्य किया है।

व्याख्या : कुछ दिनों से सुना जा रहा है कि शेर अहिंसा तथा सह-अस्तित्व का बहुत अच्छा समर्थक हो गया है इसलिए वह जंगली जानवरों का शिकार नहीं करत॥। शेर के मुँह में सभी जानवर बिना किसी आपत्ति के घुसे चले जा रहे हैं तो शेर को शिकार करने की क्या आवश्यकता है। व्यवस्था रूपी शेर के पास सब भ्रमवश चले तो जाते हैं, किंतु उन्हें कुछ भी नहीं मिलता, केवल निराशा ही हाथ लगती है। आज देश की व्यवस्था अहिंसावादी और सह-अस्तित्ववादी होने का दंभ भर रही है, लेकिन वास्तविकता एकदम भिन्न है।

विशेष :

  1. वर्तमान समाज की भ्रष्ट व्यवस्था पर तीखा व्यंग्य है।
  2. प्रतीकात्मक और व्यंग्यात्मक भाषा-शैली का प्रयोग हुआ है।
  3. तत्सम, तद्भव, उर्दू तथा अंग्रेजी शब्दों का सहज प्रयोग है।

6. राजा ने हुक्म दिया कि उसके राज में सब लोग अपनी आँखें बंद रखेंगे ताकि उन्हें शांति मिलती रहे। लोगों ने ऐसा ही किया, क्योंकि राजा की आज्ञा मानना जनता के लिए अनिवार्य है। जनता आँखें बंद किए-किए सारा काम करती थी और आश्चर्य की बात यह कि काम पहले की तुलना में बहुत अधिक और अच्छा हो रहा था। फिर हुक्म निकला कि लोग अपने-अपने कानों में पिघला हुआ सीसा डलवा लें, क्योंकि सुनना जीवित रहने के लिए बिल्कुल जरूरी नहीं है। लोगों ने ऐसा ही किया और उत्पादन आश्चर्यजनक तरीके से बढ़ गया।

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश असगर वजाहत द्वारा रचित लघुकथा ‘पहचान’ से लिया गया है। इसमें बताया गया है कि राजा को बहरी, गूँगी और अंधी प्रजा पसंद आती है क्योंकि तभी वह अपना स्वार्थ सिद्ध कर पाता है।

व्याख्या : राजा अपना हित साधने के लिए प्रजा को तरह-तरह के हुक्म देता रहता है। एक बार उसने हुक्म दिया कि प्रजा के सब लोग अपनी आँखें बंद रखेंगे। इससे उन्हें शांति मिलेगी। वास्तविकता यह थी कि वह अपने कारनामों पर लोगों की नजर नहीं पड़ने देना चाहता था। राजा की आज्ञानुसार लोगों ने अपनी आँखें बंद कर लीं। वे इसी स्थिति में काम करते रहे। हैरानी की बात तो यह थी कि काम पहले की तुलना में काफी ज्यादा और अच्छा हो रहा था। लोगों का ध्यान इधर-उधर जाता ही न था। फिर राजा का हुक्म निकला कि लोग अपने कानों में पिघला हुआ सीसा डलवा लें ताकि वे कोई बात सुन न सकें। राजा के अनुसार जीने के लिए सुनना जरूरी नहीं है। लोगों ने राजा की इस आज्ञा का भी पालन कर दिखाया। इससे उत्पादन में बहुत बढ़ोतरी हो गई। इस गद्यांश का निहितार्थ यह है कि राजा अंधी-बहरी प्रजा चाहता है ताकि वह मनमानी कर सके। उत्पादन बढ़ना भी उसी के हित में है। इसका लाभ लोगों को नहीं मिलता। यह राजा सत्ताधारी है और लोगों का शोषण करता है।

7. फिर हुक्म ये निकला कि लोग अपने-अपने होंठ सिलवा लें, क्योंकि बोलना उत्पादन में सदा से बाधक रहा है। लोगों ने काफ़ी सस्ती दरों पर होंठ सिलवा लिए और फिर उन्हें पता लगा कि अब वे खा भी नहीं सकते हैं। लेकिन खाना भी काम करने के लिए बहुत आवश्यक नहीं माना गया। फिर उन्हें कई तरह की चीज़े करवाने और जुड़वाने के हुक्म मिलते रहे और वे वैसा ही करवाते रहे। राज रात-दिन प्रगति करता रहा।

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश असगर वजाहत द्वारा रचित लघुकथा ‘पहचान’ से लिया गया है। इसमें बताया गया है कि राजा को बहरी, गूँगी और अंधी प्रजा पसंद आती है क्योंकि तभी वह अपना स्वार्थ सिद्ध कर पाता है।

व्याख्या : राजा अपना हित साधने के लिए प्रजा को तरह-तरह के हुक्म देता रहता है। एक बार उसने हुक्म दिया कि प्रजा के लोग अपने होठों को सिलवा लें अर्थात् बोलने पर नियंत्रण करें। राजा का तर्क था कि बोलना उत्पादन में बाधा पहुँचाता है। लोगों ने काफी सस्ती दरों पर अपने होंठ सिलवा लिए। इसके बाद लोगों को पता’चला कि होंठ सिल जाने के कारण अब वे खा भी नहीं सकते। राजी की दृष्टि में काम करना ज्यादा जरूरी था, खाना खाना नहीं। राजा और भी मूर्खतापूर्ण आज्ञाएँ देता रहा और जनता वैसा करती रही। जनता गूँगी बहरी बन गई। इससे शासन दिन-प्रतिदिन प्रगति करता चला गया अर्थात् लोगों का चुप रहना ही शासन की प्रगति का आधार है।

विशेष :

  1. प्रतीकात्मक शैली का अनुसरण किया गया है।
  2. भाषा सीधी, सरल एवं सुबोध है।

8. एक मिल मालिक के दिमाग में अजीब-अजीब खयाल आया करते थे जैसे सारा संसार मिल हो जाएगा, सारे लोग मजदूर और वह उनका मालिक या मिल में और चीजों की तरह आदमी भी बनने लगेंगे, तब मजदूरी भी नहीं देनी पड़ेगी, वगैरा-वगैरा। एक दिन उसके दिमाग में खयाल आया कि अगर मजदूरों के चार हाथ हों तो काम कितनी तेजी से हो और: मुनाफा कितना ज्यादा; लेकिन यह काम करेगा कौन ? उसने सोचा, वैज्ञानिक करेंगे। ये हैं किस मर्ज की दवा ? उसने यह काम करने के लिए बड़े वैज्ञानिकों को मोटी तनख्वाहों पर नौकर रखा और वे नौकर हो गए। कई साल तक शोध और प्रयोग करने के बाद वैज्ञानिकों ने कहा कि ऐसा असंभव है कि आदमी के चार हाथ हो जाएँ। मिल मालिक वैज्ञानिकों से नाराज हो गया। उसने उन्हें नौकरी से निकाल दिया और अपने-आप इस काम को पूरा करने के लिए जुट गया।

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश असगर वजाहत द्वारा रचित लघुकथा ‘चार हाथ’ से अवतरित है। इसमें पूँजीवादी व्यवस्था में हो रहे मजदूरों के शोषण को उजागर किया गया है।

व्याख्या : लेखक पूँजीवादी मिल मालिक की बदनीयती का पर्दाफाश करते हुए कहता है कि उसके दिमाग में अपनी आमदनी बढ़ाने के विचित्र खयाल आया करते थे। वह तो यह चाहता था कि यह सारा संसार ही मिल बन जाए और सारे लोग उसमें काम करने वाले मजदूर बन जाएँ। वह ऐसी ही मिल का मालिक बनना चाहता था। वह तो यह भी चाहता था कि मिल में चीजों की तरह आदमी भी बनने लगें। तब तो उसे मजदूरी भी नहीं देनी पड़ेगी।

एक दिन उसके मन में विचार आया कि यदि मजदूरों के चार हाथ हो जाएँ तो उसका काम बड़ी तेजी से होगा और मुनाफा भी बहुत ज्यादा हो जाएगा। अब उसने विचार किया कि चार हाथ वाला काम कौन करेगा ? उसे वैज्ञानिक याद आए। उसने बड़े वैज्ञानिकों को मोटी तनख्वाह पर नौकर रख लिया। वे कई साल तक अपने प्रयोगों में जुटे रहे, पर सफ़ल न हो पाए। उन्होंने हाथ खड़े कर दिए और कहा कि आदमी के चार हाथ होने असंभवव हैं। मिल मालिक उनके निष्कर्ष से नाराज हो गया। उसने वैज्ञानिकों को तो नौकरी से निकाल दिया पर स्वयं अपनी इच्छा की पूर्ति के उपाय में जुट गया।

विशेष :

  1. शोषक वर्ग की मनोवृत्ति उजागर की गई है।
  2. सीधी, सरल भाषा का प्रयोग है।

9. हालांकि उसे खेती की हर बारीकी के बारे में मालूम था, लेकिन फिर भी डरा दिए जाने के कारण वह अकेला खेती करने का साहस न जुटा पाता था। इससे पहले वह शेर, चीते और मगरमच्छ के साथ साझे की खेती कर चुका था, अब उससे हाथी ने कहा कि अब वह उसके साथ साझे की खेती करे। किसान ने उसको बताया कि साझे में उसका कभी गुजारा नहीं होता और अकेले वह खेती कर नहीं सकता। इसलिए वह खेती करेगा ही नहीं। हाथी ने उसे बहुत देर तक पट्टी पढ़ाई और यह भी कहा कि उसके साथ साझे की खेती करने से यह लाभ होगा कि जंगल के छोटे-मोटे जानवर खेतों को नुकसान नहीं पहुँचा सकेंगे और खेती की अच्छी रखवाली हो जाएगी। किसान किसी-न-किसी तरह तैयार हो गया और उसने हाथी से मिलकर गन्ना बोया। हाथी पूरे जंगल में घूमकर डुग्गी पीट आया कि गन्ने में उसका साझा है इसलिए कोई जानवर खेत को नुकसान न पहुँचाए, नहीं तो अच्छा न होगा।

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश असगर वजाहत द्वारा रचित लघुकथा ‘साझा’ से अवतरित है। इसमें प्रभुत्वशाली वर्ग द्वारा किसानों की फसलों के हड़पने की चालों का पर्दाफाश किया गया है।

व्याख्या : किसान को खेती की हर बात का ज्ञान था, लेकिन प्रभुत्व वर्ग ने उसे बुरी तरह डरा दिया था। यही कारण था कि अब वह अकेले खेती करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। इससे पहले भी साझा खेती के चक्कर में ठगा जा चुका था। शेर, चीते, मगरमच्छ उन्हीं ठगों के प्रतीक हैं। अबकी बार हाथी उसे ठगने आया था। उसने किसान को साझा खेती करने का सुझाव दिया। किसान का अनुभव था कि साझा खेती से उसे कोई लाभ नहीं मिलता और अकेले वह खेती कर नहीं सकता, अतः उसने खेती न करने का निश्चय किया। हाथी का अपना स्वार्थ था अतः उसने काफी देर तक किसान को साझा खेती के फायदों के बारे में समझाया। उसने यह भी बताया कि साझा खेती करने से जंगल के छोटे-मोटे जानवर खेतों को नुकसान भी नहीं पहुँचा पाएँगे। इससे खेती की अच्छी रखवाली हो जाएगी। किसान हाथी की बातों में आ गया और साझा खेती के लिए तैयार हो गया। उन्होंने खेत में गन्ना बोया। हाथी ने गन्ने के खेत में अपने साझे की बात का प्रचार सारे जंगल में कर दिया और जामवरों को खेत में हानि न पहुँचाने की चेतावनी दे डाली। हाथी पूँजीपति वर्ग का प्रतीक है। यह वर्ग श्रमिकों का हर प्रकार से शोषण करता है।

विशेष :

  1. पूँजीपति शोषक वर्ग के लिए हाथी का प्रतीक सटीक बन पड़ा है।
  2. सीधी, सरल भाषा का प्रयोग किया गया है।

Hindi Antra Class 12 Summary

source

  • Balkishan Agrawal

    I bring to you the BEST  for students of Class 9th - 12th. I (Balkishan Agrawal) aim at providing complete preparation for CBSE Board Exams (Maths) along with several other competitive examinations like NTSE, NSO, NSEJS, PRMO, etc. & Maths Reasoning, Vedic Maths at the school level. Wishing you great learning in all aspects of your life!

Leave a Comment

error: Content is protected !!
download gms learning free app now